भारत की संदिग्ध रजिस्ट्री केवल एक डेटाबेस नहीं है, बल्कि यह देश की साइबर सुरक्षा की रीढ़ बन चुकी है। जैसे-जैसे डिजिटल लेनदेन और ऑनलाइन सेवाएँ तेज़ी से बढ़ी हैं, वैसे-वैसे धोखाधड़ी के मामले भी बढ़े। इस रजिस्ट्री ने एक डिजिटल ढाल की तरह काम करके ऐसे अपराधियों को रोकने में अहम योगदान दिया है। यह न केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों को वास्तविक समय (real-time) में संदिग्ध खातों की पहचान करने में मदद करता है, बल्कि नागरिकों के लिए भी सुरक्षा कवच प्रदान करता है।
अगस्त 2025 तक के आंकड़े बताते हैं कि संदिग्ध रजिस्ट्री की मदद से ₹5,111.80 करोड़ से अधिक की राशि सुरक्षित की जा चुकी है। सोचिए, अगर यह सिस्टम न होता तो लाखों लोग अपनी मेहनत की कमाई से हाथ धो बैठते। इस पहल की खासियत यह है कि पैसे निकलने से पहले ही संदिग्ध खातों को फ्रीज़ कर दिया जाता है। यह तेज़ और प्रभावी कार्रवाई डिजिटल अपराधियों के लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं है।
इस रजिस्ट्री का सबसे बड़ा फायदा है रीयल-टाइम मॉनिटरिंग। बैंक और वॉलेट कंपनियाँ जैसे ही किसी संदिग्ध खाते या लेनदेन को पहचानते हैं, तुरंत सिस्टम अलर्ट देता है। इस दौरान न केवल पैसे को सुरक्षित रखा जाता है, बल्कि धोखेबाजों की अगली चाल भी रोकी जाती है। यही कारण है कि आज डिजिटल लेनदेन करने वाले करोड़ों भारतीयों को यह सिस्टम भरोसेमंद और सुरक्षित महसूस कराता है।
साइबर अपराधी अकसर फेक अकाउंट, म्यूल अकाउंट और फर्जी मोबाइल नंबर का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन I4C की यह संदिग्ध रजिस्ट्री अब उनके लिए एक बड़ी रुकावट बन गई है। चूंकि इसमें लगातार नए संदिग्ध डेटा जोड़े जा रहे हैं, अपराधियों की पहचान कर पाना आसान हो गया है। यही वजह है कि अब वे सिस्टम में घुसपैठ करके आसानी से लोगों को चूना नहीं लगा पा रहे।
इस रजिस्ट्री का सबसे मज़बूत पहलू है इसका साझा उपयोग और समन्वय (collaboration)। इसमें सिर्फ बैंक ही नहीं, बल्कि पुलिस, खुफिया एजेंसियाँ और वित्तीय संस्थाएँ भी शामिल हैं। जब सभी संस्थान मिलकर काम करते हैं तो न केवल धोखाधड़ी को तुरंत रोका जा सकता है, बल्कि अपराधियों को कानूनी रूप से पकड़ने और सजा दिलाने की प्रक्रिया भी तेज़ हो जाती है। यह सामूहिक कवच (collective shield) भारत को एक सुरक्षित डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर ले जा रहा है।
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