भारत में साइबर अपराध अब केवल तकनीकी समस्या नहीं है, यह राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन चुका है। संसदीय स्थायी समिति की 254वीं रिपोर्ट ने जो तथ्य और सिफारिशें रखी हैं, वह हमें इस सच्चाई का सामना कराती हैं कि ₹31,000 करोड़ की साइबर धोखाधड़ी केवल एक आंकड़ा नहीं बल्कि एक गंभीर चेतावनी है।
वर्तमान IT अधिनियम 2000 उस दौर के लिए बना था, जब न इंटरनेट की पहुँच इतनी व्यापक थी और न ही आज जैसी तकनीकें थीं। अब हालात बदल चुके हैं:
वित्तीय धोखाधड़ी रोज़ाना करोड़ों का नुकसान करा रही है।
डीपफेक तकनीक राजनीति, समाज और व्यक्तिगत जीवन पर गहरा असर डाल रही है।
अंतरराष्ट्रीय स्कैम फैक्ट्रियाँ भारत के डिजिटल इकोसिस्टम को कमजोर कर रही हैं।
समिति ने इसलिए सिफारिश की है कि कड़े दंड, गैर-जमानती अपराध, और सेफ हार्बर नियमों की समीक्षा समय की मांग है।
कानून कितने भी सख्त क्यों न हों, अगर नागरिक ही सतर्क न हों तो सुरक्षा अधूरी रहेगी।
हर QR कोड स्कैन करने से पहले सोचें।
हर लिंक क्लिक करने से पहले जांचें।
हर SIM जारी करते समय KYC की सख्ती को स्वीकारें।
यानी साइबर स्वच्छता अब केवल विकल्प नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा की पहली शर्त है।
यह सिर्फ सरकार बनाम अपराधियों की लड़ाई नहीं है, बल्कि एक सामूहिक संघर्ष है।
AI और डीपफेक के लिए नियमन जरूरी है, ताकि झूठ और सच में फर्क किया जा सके।
पीड़ितों को मुआवज़ा दिलाना भी उतना ही अहम है, ताकि सिस्टम पर भरोसा कायम रहे।
CBI को पूरे देश में साइबर अपराधों की जांच का अधिकार मिलना चाहिए, ताकि अपराधी कानूनी जटिलताओं से न बच पाएं।
जैसे शारीरिक स्वच्छता महामारी से बचाती है, वैसे ही साइबर स्वच्छता डिजिटल खतरों से बचाती है।
मजबूत पासवर्ड अपनाएँ
दो-स्तरीय प्रमाणीकरण (2FA) का इस्तेमाल करें
संदिग्ध ऐप्स और APK इंस्टॉल न करें
समय-समय पर सिस्टम और ऐप्स अपडेट करें
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