भारत ने आज विज्ञान, तकनीक और डिजिटल अर्थव्यवस्था में वैश्विक पहचान बनाई है। लेकिन एक महत्वपूर्ण क्षेत्र में हम अब भी दूसरों पर निर्भर हैं—सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म। WhatsApp, Facebook, X (Twitter), Instagram और Telegram जैसे विदेशी प्लेटफॉर्म पर भारत की डिजिटल बातचीत और सूचना प्रवाह टिका हुआ है। अगर कल इनमें से कोई प्लेटफॉर्म भारत में बंद हो जाए या नियमों से टकराव हो जाए, तो करोड़ों लोगों की आवाज़ अचानक रुक सकती है।
यही कारण है कि डिजिटल स्वराज्य की दिशा में भारत को अपने स्वदेशी सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफॉर्म का रोडमैप तैयार करना होगा।
नेपाल में हाल ही में सोशल मीडिया प्रतिबंध से जो संकट पैदा हुआ, उसने यह स्पष्ट कर दिया कि डिजिटल संप्रभुता केवल तकनीकी सुविधा नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतंत्र की मजबूती का सवाल है। भारत जैसा विशाल और विविधतापूर्ण देश विदेशी ऐप्स पर निर्भर रहकर लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रह सकता।
नेपाल से सीख लेते हुए भारत को तुरंत अपनी डिजिटल संरचना पर काम करना चाहिए, ताकि किसी भी वैश्विक दबाव या तकनीकी संकट की स्थिति में नागरिकों की आवाज़, संवाद और शासन प्रभावित न हो।
भारत को इस दिशा में कदम बढ़ाने के लिए Digital Sovereignty Mission शुरू करना चाहिए, जो आत्मनिर्भर भारत अभियान का डिजिटल स्तंभ बने। इसमें:
डेटा लोकलाइजेशन (डेटा भारत में ही संग्रहीत हो)
बहुभाषीय पहुंच (हिंदी, तमिल, बंगाली, मराठी से लेकर जनजातीय भाषाएँ)
नैतिक AI और पारदर्शिता
को मुख्य स्तंभ बनाया जा सकता है।
इस मिशन का उद्देश्य केवल तकनीक बनाना नहीं, बल्कि नागरिकों का विश्वास और वैश्विक स्तर पर भारत की डिजिटल पहचान बनाना होगा।
आज भारत में सोशल मीडिया का लगभग 80% उपयोग विदेशी कंपनियों के हाथ में है। इसका मतलब है कि भारत के नागरिकों का डेटा, उनकी आवाज़ और यहां तक कि लोकतांत्रिक संवाद भी बाहरी नियंत्रण में है।
इस निर्भरता को खत्म करने के लिए भारत को चाहिए कि:
स्वदेशी प्लेटफॉर्म जैसे Sandes (मैसेजिंग), Koo (माइक्रोब्लॉगिंग), Chingari (वीडियो), i.AI (सुपर-ऐप) को सरकारी और सार्वजनिक संस्थानों में अपनाया जाए।
नागरिक सेवाओं, पुलिस आउटरीच और आपातकालीन संचार के लिए इन्हें अनिवार्य बनाया जाए।
स्टार्टअप्स को टैक्स छूट और बीज-निधि देकर नवाचार को प्रोत्साहन दिया जाए।
स्वदेशी सोशल नेटवर्क का मतलब सिर्फ आत्मनिर्भरता नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक सुरक्षा कवच भी है। विदेशी प्लेटफॉर्म अक्सर गलत सूचना, फेक न्यूज़ और अचानक पॉलिसी बदलाव से संकट पैदा करते हैं।
अगर भारत के पास खुद के सुरक्षित और पारदर्शी प्लेटफॉर्म होंगे, तो नागरिक बिना डर के अपनी राय रख सकेंगे, और सरकार सुनिश्चित कर सकेगी कि राष्ट्रीय सुरक्षा या डेटा गोपनीयता से समझौता न हो।
भारत की ताकत उसकी विविधता है। अगर सोशल मीडिया में स्थानीय भाषाओं और बोलियों को प्राथमिकता दी जाए तो यह न केवल लोकतंत्र को मज़बूत करेगा बल्कि नागरिकों की डिजिटल भागीदारी भी बढ़ाएगा।
AI आधारित अनुवाद और वॉयस इंटरफेस भारत को “सभी के लिए सुलभ डिजिटल भारत” बनाने में मदद करेंगे। साथ ही, BIMSTEC और SAARC जैसे मंचों पर भारत अपने प्लेटफॉर्म को डिजिटल निर्यात के रूप में पेश कर सकता है, जिससे वह क्षेत्रीय तकनीकी शक्ति बनेगा।
भारत के लिए एक व्यावहारिक रोडमैप इस प्रकार हो सकता है:
रणनीति और फंडिंग – Digital Sovereignty Mission की घोषणा और स्टार्टअप्स को प्रोत्साहन।
प्लेटफॉर्म विकास और पायलट – मैसेजिंग, माइक्रोब्लॉगिंग, वीडियो शेयरिंग और सुपर-ऐप्स का लॉन्च और सरकारी प्रयोग।
विस्तार और निर्यात – नागरिक सेवाओं से लेकर वैश्विक बाज़ार तक इनका विस्तार और भारत को डिजिटल शक्ति के रूप में स्थापित करना।
“Made in India” सोशल मीडिया सिर्फ गर्व का विषय नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा और साइबर संप्रभुता का प्रतीक है। अगर भारत के पास अपने प्लेटफॉर्म होंगे, तो:
डेटा और गोपनीयता पर नियंत्रण रहेगा,
नागरिकों की आवाज़ कभी दबाई नहीं जा सकेगी,
और भारत डिजिटल लोकतंत्र का वैश्विक मॉडल बन सकेगा।
Like on Facebook
Follow on Twitter
Follow on Instagram
Subscribe On YT