हर संगठन की डिजिटल सुरक्षा की पहली दीवार उसका Resilience Framework होना चाहिए।
साइबर लचीलापन सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं, बल्कि संस्कृति, प्रशिक्षण और तत्परता का समन्वय है।
यह सुनिश्चित करता है कि हमले के दौरान भी महत्वपूर्ण सेवाएं बाधित न हों।
आज की दुनिया में सिर्फ सुरक्षा उपाय (जैसे एंटीवायरस) पर्याप्त नहीं हैं।
Resilience एक रणनीतिक कदम है जिससे हम हमलों को झेलने और जल्दी उबरने के लिए तैयार रहते हैं।
यह व्यवसायिक निरंतरता (Business Continuity) का मूल आधार बनता जा रहा है।
ज़्यादातर संगठन साइबर अटैक से नहीं, सिस्टम ठप हो जाने से अधिक प्रभावित होते हैं।
साइबर Resilience इस ठहराव को कम से कम समय में बहाल करने की क्षमता है।
तेज़ प्रतिक्रिया और रिकवरी ही वास्तविक जीत है।
Resilience अपनाने का मतलब है – सिर्फ दीवारें बनाना नहीं, बल्कि उनके गिरने पर फिर से खड़ा होना सीखना।
आज का दौर "Zero Trust" और "Assume Breach" रणनीतियों का है – तैयार रहना ही सुरक्षा है।
Monitoring, Backup, और Regular Drills Resilience की नींव हैं।
साइबर सुरक्षा: बचाव में पहला कदम, साइबर Resilience: संपूर्ण यात्रा की योजना।
सुरक्षा है हमले को रोकना, Resilience है हमले के बाद भी काम जारी रखना।
दोनों साथ मिलकर एक संगठन को सुरक्षित, लचीला और सक्षम बनाते हैं।
आज का खतरा सिर्फ वायरस नहीं, बल्कि डेटा ब्रीच, फिशिंग, और रैनसमवेयर जैसे जटिल हमले हैं।
साइबर Resilience इनसे उबरने की पूरी रणनीति देता है – तैयारी, पहचान, प्रतिक्रिया और पुनर्प्राप्ति।
यह मानसिक और तकनीकी दोनों स्तर पर स्थायित्व (stability) की मांग करता है।
असली सुरक्षा वही है जो हमले के बाद भी संस्था को चालू रखे।
Disaster Recovery Planning, Employee Awareness, और Real-time Monitoring जैसे उपाय Resilience के अंग हैं।
Resilience एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, जो सीखते रहने पर आधारित है।
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