स्कैमर्स मानसिक दबाव और डर का इस्तेमाल कर लोगों को झूठे आरोपों में फँसाते हैं।
वीडियो कॉल पर फर्जी अधिकारी बनकर गिरफ्तारी की धमकी दी जाती है।
डरा-धमका कर लोगों से ऑनलाइन पेमेंट वसूली की जाती है — यह गिरफ़्तारी नहीं, साइबर ठगी है।
यह एक नया साइबर-जाल है, जिसमें कानून का मुखौटा पहनकर आम लोगों को फँसाया जा रहा है।
कोई भी भारतीय या अंतरराष्ट्रीय कानून एजेंसी वीडियो कॉल पर गिरफ्तार नहीं करती।
असली गिरफ्तारी में लिखित समन, FIR और लोकल पुलिस की प्रक्रिया होती है।
स्कैमर्स वीडियो कॉल पर नकली अफसर, कोर्ट रूम और वारंट दिखाते हैं — ये सब एडिटेड और डीपफेक होता है।
यह एक मनोवैज्ञानिक हमला है, न कि कानूनी कार्रवाई।
यह सिर्फ तकनीकी धोखा नहीं, बल्कि मानसिक शोषण का संगठित नेटवर्क है।
पीड़ितों को गोपनीयता के नाम पर अकेले में रखा जाता है और घंटों तक कॉल पर रोका जाता है।
इसके पीछे अंतरराष्ट्रीय गिरोह हैं, जो भारत जैसे देशों में कमजोर साइबर अवसंरचना का लाभ उठाते हैं।
जब तक हम इसे एक "क्राइसिस" की तरह नहीं देखेंगे, समाधान संभव नहीं होगा।
फर्जी कॉल + डीपफेक वीडियो + नकली दस्तावेज़ = डिजिटल गिरफ्तारी स्कैम
स्कैमर्स आपको विश्वास दिलाते हैं कि आपके खिलाफ "FIR", "मनी लॉन्ड्रिंग", या "पॉर्नोग्राफी" का केस है।
डर फैलाकर पैसा ऐंठना इस स्कैम का मुख्य उद्देश्य होता है।
इसका समाधान है जागरूकता, मजबूत कानून, और डिजिटल साक्षरता।
डिजिटल गिरफ़्तारी कानून का हिस्सा नहीं, बल्कि अपराधियों का नया “टूल” है।
असली पुलिस कभी भी WhatsApp या Zoom पर आरोप नहीं लगाती।
कानून का भय दिखाकर जो लोग पैसे मांगें, वे स्कैमर हैं—उन्हें रिपोर्ट करें, डरें नहीं।
सोशल मीडिया और टेलीकॉम कंपनियों को भी इसका हिस्सा बनना होगा जागरूकता फैलाने में।
डरने की नहीं, लड़ने की ज़रूरत है—1930 साइबर हेल्पलाइन पर तुरंत शिकायत करें।
जितनी जल्दी रिपोर्ट की जाएगी, उतना ज्यादा पैसा रिकवर होने की संभावना होती है।
आप अकेले नहीं हैं—हज़ारों लोग इस स्कैम का शिकार हो चुके हैं।
एक्शन लेकर ही इस साइबर बीमारी को रोका जा सकता है।
असली गिरफ्तारी में कभी भी डिजिटल माध्यम का इस्तेमाल नहीं होता।
वीडियो कॉल पर अफसर, कोर्ट रूम, और वारंट दिखाना पूरी तरह नकली है।
तुरंत कॉल काटें, स्क्रीनशॉट लें और साइबर क्राइम पोर्टल या 1930 पर रिपोर्ट करें।
परिवार और दोस्तों को भी इस तरह के स्कैम के बारे में जागरूक करें।
यह स्कैम छोटे-छोटे मामलों से शुरू होता है, लेकिन कई लोग करोड़ों खो चुके हैं।
गुजरात में एक डॉक्टर ने 90 दिनों में ₹19 करोड़ गँवा दिए—सिर्फ डर और भ्रम की वजह से।
स्कैमर आपको “सुपरविजन में रहने”, “वीडियो रिकॉर्डिंग” या “सेफ्टी के नाम पर पेमेंट” के लिए मजबूर करते हैं।
यह साबित करता है कि ये सिर्फ टेक्निकल फ्रॉड नहीं, बल्कि मानव मनोविज्ञान का गहरा शोषण है।
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